Tuesday, February 8, 2022

परंपरा  की रूढ़ियों से मुक्ति:समकाल के नेपथ्य में 
              ---संतोष सुपेकर,उज्जैन 



निबंध क्या है?एक तार्किक विशेषता है ,अपने विचारों को अधिक प्रभावी रूप में प्रस्तुत कर सफल होने की तकनीक है निबंध।पर प्रश्न यह भी  है कि आजके, चिंतनहीनता की ओर बढ़ते निष्ठुर युग मे निबंध लेखन कहीं हाशिये की ओर तो नही जा रहा? और हम (दुर्भाग्य से नियोजित)वैचारिकता के अकाल की ओर तो नही बढ़ रहे?
परन्तु सुखद है कि विचार शून्यता के इस दमघोटू वातावरण में भी , हाशिये पर जा रही इस विधा ,निबंध लेखन पर काम हो रहा है और इस पर संकलन प्रकाशित करने का साहस दिखाया है वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका डॉक्टर शोभा जैन ने अपने सद्य:सृजित निबंध संकलन 
 'समकाल के नेपथ्य में 'के प्रकाशन  द्वारा।
 निबंध ही क्यों ?इस उत्सुकता पर अपने आत्मकथ्य में शोभाजी लिखतीं हैं कि विचार के क्षणों में मेरे मानस में गद्य ही आकार लेता है।
आश्चर्यजनक यह है कि उनके अधिकांश निबंध कम्प्यूटर में लुप्त हो चुके थे फिर भी उन्होंने अपनी विलक्षण स्मृति शक्ति के द्वारा उनका पुनर्लेखन किया और इस तकनीकी पराधीनता पर विजय पाई।
इस संकलन में वैचारिक उद्वेलना उत्पन्न करते,विचारों को लगी जंग छुड़ाते 55 निबंध हैं जो अहिंसा,साहित्यिक उलझन,शिक्षा नीति,अंग्रेजी भाषा के आतंक,लोकतंत्र ,हिन्दी का भविष्य ,अपराधों पर लगाम जैसे विविध विषयों पर केंद्रित हैं।
शोभाजी का चिन्तन उनकी भाषा में किस तरह व्यक्त होता है ,देखिए-
राष्ट्रीयता मनुष्य को अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति समर्पित होना सिखाती है।
विडम्बना यह है कि खेत में हल तो मिल रहे हैं पर किसानों की समस्याओं के हल नही मिल रहे।
स्त्री होती ही पानी की तरह है जिस बर्तन में डालो आकार के ही लेती है।उसे अपनी सम्भावनाओं के द्वार जरूर तलाशने चाहिए किन्तु अपनी आत्मा के द्वार बंद करके नही।
म्यूजियम बन जाने के बजाय अपनी जड़ों को संजोता नवोन्मेष जरूरी है।
बाज़ार ने हमारी भावनाओं को खरीद लिया है।
इस समय भाषा बीमार है,विचार अवकाश पर हैं और चिन्तन सीमित है।
लोकतंत्र में शासक वाली मानसिकता से बाहर आना अनिवार्य आवश्यकता... ...
उद्वेलित करती अति सम्पन्न विचारशक्ति। 
शोभाजी ने केवल समस्याओं का ही उल्लेख नही किया है वरन समाधान भी सुझाए हैं, यथा-हिन्दी को विश्वभाषा बनाने में कठिनाई वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दावली की है। इसमे भारतीय बोलियों का सहारा लेकर नए वैज्ञानिक व वाणिज्यिक शब्द गढ़े जा सकते हैं जो बोलचाल में काम आएंगे।
सभी निबंध स्वतंत्र होते हुए भी एक आंतरिक सूत्र से जुड़े हैं और वह है मानवता के भविष्य की चिन्ता।
आशा है कि परम्परा की रूढ़ियों से मनुष्य के व्यक्तित्व को मुक्त कराता यह वैचारिक अनुष्ठान साहित्य जगत में भरपूर सराहना पाएगा।
  कृति-समकाल के नेपथ्य में 
           (निबंध संग्रह)
रचनाकार-डॉ. शोभा जैन
मूल्य-₹275/
भावना प्रकाशन,दिल्ली
    मो  8800139684
 


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