दैनिक स्वदेश में प्रति रविवार स्तंभ का लेख
Sunday, April 28, 2024
Wednesday, April 24, 2024
स्वदेश में प्रति रविवार स्तंभ
इस सप्ताह का लेख
हम चाहते हैं हमारा वर्चस्व कायम रहे
21/04/2024
हम जिस समय में हैं हमारा जीवन तनाव, उथल-पुथल और विकारों से भरा हो गया है| जीवन पहले से अधिक जटिल रूप से अन्योन्याश्रित हो गया है। यद्यपि हम बाह्य रूप से विश्व-शांति और अहिंसा की वकालत कर रहे हैं, फिर भी हम युद्ध की तैयारी कर रहे हैं। यह आधुनिक समय का संकट है कि हम शांति की आकांक्षा तो करते हैं लेकिन मानवजाति के भीषण जनाजे की तैयारी करते हैं। अंततः कोई भी समाधान भ्रम और पूर्वाग्रहों से मुक्त ज्ञान के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
आज दो लोगों के बीच मतभेद विचारों की वजह से होते हैं |अपनी बात को सही और दूसरों की बात को गलत मानने के कारण ही समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यह साम्राज्यवाद और विचारों में आक्रामकता है जब कोई पक्ष या दूसरा स्वयं को पूर्ण सत्य का एकमात्र स्वामी समझता है, तो यह स्वाभाविक हो जाता है कि दूसरा या तो अपराधी की तरह असत्य है या गलत | ऐसी अलगाववादी प्रवृत्तियों के कारण हर कोई स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है। अनेकांत दृष्टि सभी के हितों का चिंतन करता है वह वर्चस्ववाद का विरोधी है |
Saturday, April 20, 2024
समालोचन-- ''वे रचना या रचनाकार के साथ कोई मुलाहिज़ा नहीं पालते'
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यह पहला अवसर है जब ९५१ (951 )पृष्ठों के किसी कृतित्व केंद्रित विशेषांक (शोधपरक) का हिस्सा बनी |
अंक के कुल जमा ११ अध्याय में से अध्याय चार -- 'समालोचन' के अंतर्गत साहित्य, पत्रकारिता जगत के महत्वपूर्ण नामों (लीलाधर मंडलोई जी,प्रियदर्शन जी, विष्णु नागर जी,प्रकाशकांत जी ,आदि) जिन्हें मैं पढ़ती रहीं हूँ में अपना नाम देखना आश्चर्य से भर गया|
विशेषांक में मेरा समालोचकीय लेख १२ पृष्ठों का है जिसका शीर्षक है --- ''वे रचना या रचनाकार के साथ कोई मुलाहिज़ा नहीं पालते'
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सापेक्ष पत्रिका का अशोक वाजपेयी विशेषांक कल घर पर पहुंचा | सेतु प्रकाशन से प्रकाशित इस विशेषांक का संपादक :महावीर अग्रवाल जी ने किया है यह लेख लिखवाने का श्रेय भी उन्ही को जाता है | लगभग एक वर्ष पूर्व उन्होंने दिल्ली साहित्य अकादेमी की पत्रिका -समकालीन भारतीय साहित्य ' में मेरी विस्तृत समीक्षा पढ़ी थी | पत्रिका में दिये नंबर से मुझे फोन किया | उस समय इस विशेषांक की तैयारी चल रही थी | १२ पृ लिखने के लिए मैंने कुछ माह का समय मांगा जो मुझे मिला भी | अब प्रकाशितलेख आपके समक्ष है |
समग्र अंक पर विस्तार से लिखूंगी
फ़िलहाल इतना ही कि इसमें आप साहित्य की लगभग हर विधा से गुजर सकेंगे | अंक में धर्मवीरभारती ,भारत भूषण अग्रवाल , केदारनाथ सिंह नरेश मेहता ,कुंवर नारायण ,ज्ञानरंजन धूमिल के महत्वपूर्ण पत्र सम्मिलित हैं तो विष्णु खरे ,कृष्णा सोबती ,विनोद शाही आदि के साक्षात्कार भी |व्यक्तित्व केंद्रित शीर्षक से बुने अध्याय में ध्रुव शुक्ल ,प्रयाग शुक्ल,सुबोध सरकार , अयप्पा पणिक्कर आदि कई महत्वपूर्ण नाम हैं जिनकी अनुभवसम्पन्न दृष्टि से अंक बहुत समृद्ध हुआ |
शुद्ध हिंदी में धाराप्रवाह बोलना, विषय को समझना और विषय से सम्बद्ध बने रहने का हुनर है युवा होती पीढ़ी में
इस समृद्ध अनुभव के लिए बहुत आभार डेली कॉलेज, इंदौर
संदर्भ --पद्मश्री जगन्नाथ कृष्णा काटे स्मृति अखिल भारतीय हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता
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मित्रों, विगत बुधवार पद्मश्री जे.के.काटे स्मृति अखिल भारतीय हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता डेली कॉलेज ,इंदौर द्वारा आयोजित की गई |
(शिक्षाविद -जगन्नाथ कृष्णा काटे | शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 1972 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया)
वाद -विवाद के पक्ष -विपक्ष के पहले और दूसरे चरण में 'अंकीय' निर्णायक की भूमिका मेरे लिए बड़ी चुनौती भरी रही |
हर पक्ष में कोई नया तथ्य था| आत्मविश्वासी कहन और विषय संरचना में समग्रता | मेरे साथ अंकीय निर्णायक की भूमिका में वरिष्ठ पत्रकार (पीटीआई से ) हर्षवर्धनप्रकाश जी रहे |
विषय रहे --1 --यह सदन मानता है कि कृतिम बुद्धिमत्ता (एआई )वरदान नहीं अभिशाप है
2 --- नारी सशक्तिकरण के लिए आर्थिक सशक्तिकरण सबसे ज्यादा जरुरी
देश के विविध प्रांतों से आये प्रतिष्ठित विद्यालयों के प्रतिनिधित्वकर्ता की भूमिका में सभी उत्कृष्ट प्रतिभागियों की वाक्पटुता ने बहुत प्रभावित किया |
मानव-भविष्य को अकल्पनीय तरीकों से आकार देने वाले कृत्रिम बुद्धिमत्ता
(AI ) से मानवता का अस्तित्व कितने खतरे में है ,इसकी अच्छी और बुरी संभावनाओं पर युवा मन की यह बहस बहुत जरुरी लगी | इस विषय के माध्यम से ही सही संभावित जोखिमों और चुनौतियों पर सोचने की नई दृष्टि विस्तार ले सकेगी |
विशुद्ध अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थियों का शुद्ध हिंदी में धाराप्रवाह बोलना, विषय को समझना और विषय से सम्बद्ध होकर सवाल- जवाब रखना आने वाले समय के लिए गहरी आश्वस्ति देता है |
हमारी कुछ पूर्व निर्धारित धारणाएं बनी हुई हैं पीढ़ियों के भाषा दायित्व को लेकर आमतौर पर लगता है वे सजग नहीं है |
लेकिन इस प्रतियोगिता ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया कि पीढ़ियों को सही निदेशन की दरकार है | अंग्रेजी माध्यम के बच्चे हिंदी में (शुद्ध हिंदी में )सम -सामयिक विषयों पर बात रखते हैं तो कुछ पुरानी धारणाएं टूटती हैं तो कुछ जुड़ती भी हैं | समय अनुशासन की प्रतिबद्धता के साथ संपन्न दोनों चरण इंदौर शहर के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान की पारदर्शिता का भी गहरा अनुभव दे गये |
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