Sunday, April 30, 2023

 मेरे आकर्षण का केंद्र सदा यह नाभि कुंड रहा...

सौंदर्य की नदी माँ नर्मदा

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जिसके बारे में तरह- तरह की मान्यताएं सुनी उसके बारे में जानने की जिज्ञासा अब भी वैसी ही है |भले ही सदियों से इन धाराओं में छोटे-छोटे अनगिनत प्रपात फड़फड़ा रहे हैं।लेकिन हम जाने किस ओर भागे जा रहें हैं किनारों पर आज भी जीवन वही है लेकिन उन किनारों से हम किनार कर गए |यही वो जगह है जिसके हरेक कोने के साथ बचपन की इतनी स्मृतियाँ जुड़ीं हैं जिसे देखते ही मन पीछे की ओर खींचा चला जाता है|कईं बार मंत्रोच्चार के साथ माँ ,नर्मदा तट पर कन्या भोजन कर नागर जी की रामकथा भी सुनी | केवल लँगोटी और तूँबी के साथ यात्रा के परकम्मावासियों का एक जत्था सदा तट की रौनक बनाए रखता |इन दिनों रात के अँधेरे में उतरता जल भी निहारा और चढ़ते सूरज के साथ जल की झिलमिल छवि भी बांधे रखी|नाविक नाभि कुंड तक अपनी नाव ले जाता | हम भी कुमकुम अक्षत चढ़ा तेज लहरों के साथ लौट आते | लेकिन मेरा ाआकर्षण सदा वो नाभि कुंड ही रहा जिसके बारे में बहुत सी मान्यताएं जुड़ी हैं आज भी |मंदिर तट और पर्वत श्रंखलाओं की त्रिवेणी जैसे जनम जनम का साथ हो | सौंदर्य की नदी माँ नर्मदा के दर्शन सौभाग्य से मिलते है|

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दैनिक स्वदेश में प्रति रविवार स्तंभ का लेख