Wednesday, March 20, 2024

मंच पर चढ़ते -उतरते 'अतिथियों' सा नहीं धरातल पर एक साथ समान रूप से बिछे हरसिंगार सा 
आखिर सम्मान के उपलक्ष में रखे आयोजनों से हमें चाहिए क्या होता है ?
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सम्माननीय मित्रों इस महिला दिवस पर एक कोना खंडित होने से बच गया शायद इसलिए कि विवेक की कोई ऐसी जमीन थी जहाँ छोटी -मोटी परस्पर असहमतियों के बावजूद विषय -सत्व को बचाये रखना मूल में था |
साधन के रूप में धन की महत्ता किसी भी युग में कम नहीं रही ,लेकिन ,हमारे समय में उसने 'विचार' का दर्जा हासिल कर लिया है | शायद इसलिए अब आयोजनों में धन वैभव की भव्यता बोलती हैं मंच अक्सर विचार शून्य नजर आता है | बावजूद इसके मंच पर लगभग ‘आधा दर्जन’( इस शब्द का प्रयोग करना विवशता लगी ) अतिथियों का अलग -अलग भूमिकाओं में होना मीडिया कवरेज के लिए जरूर सुलभ साधन हो सकता है लेकिन उसका विषय वस्तु से अंतरंग न हो पाना 'अक्सर' उसकी नियति बन जाती है|
निमंत्रण पत्र (आमंत्रण नहीं )के साथ बिना किसी औपचारिकता के आत्मीय संवाद करना तो हम सभी चाहते हैं क्योकि भीतर से सभी भरे हैं | हर कोई चाहता है कि कोई उसे सुने | इन दिनों जहाँ हम भूल ही चुकें हैं कि ‘’भाषण विहीन’’ आयोजनों का सत्व क्या हो सकता है| कितने परस्पर आत्मीय सम्वादों से हम दूर जा चुके हैं| मंच पर अलग -अलग भूमिकाओं को वहन करने वाले भी नहीं जानते कि उनकी भूमिकाएं विषयों पर कितना खरा उतर सकी | मंच से उतरते ही 'अक्सर' अतिथि, मुख्य अतिथि, अध्यक्ष की ‘’विचार भूमिकाएं’’ भी उतर जाती हैं | ऐसे में इंदौर शहर की प्रतिष्ठित सेवा सुरभि संस्था का अनूठा नवाचार अनुकरणीय हैं जिसे किसी सम्माननीय मिलन उत्सव की तरह सहेजा गया उत्सव में शामिल हर किसी ने लगभग 2-3 मिनट में अपने मन की, अपने समय की अनुभव की बात कही | वाकई कुछ आयोजनों में अनुशासन के कुछ प्रतिबंध अब समय की जरूरत लगते हैं | ऐसे ही कुछ समय के बंध और किसी भी भूमिका के बंधन से मुक्त आयोजन में सहभागी होना नवाचार को विस्तार ही देता है |हमें अब आयोजनों की परिपाटी पर भी विचार करने की जुरूरत है ''सेवा सुरभि'' का यह नवाचार अधिक विस्तार पाये |आयोजनों के लिए कुछ अनुशासन कुछ प्रतिबंध चाहे समय के हो अतिथियों के या फिर आमंत्रित किये जाने वाले पाठक श्रोताओं के कुछ बदलाव तो जरुरी है |
 सूत्रधार की केंद्रीय भूमिका निश्चित ही आयोजन के इस पूरे अनुशासन को साधने का दायित्व निभाती हैं यहाँ भी संजय पटेल भाई साहब के प्रबंधन की जितनी प्रशंसा की जाये कम है | 
इन तस्वीरों में कुछ महत्वपूर्ण सहृदय चेहरे छूटे हुए हैं जो वहां थोड़े समय के लिए ही सही मौजूद रहें आयोजन के आखरी चरण तक न रुक सके |



 



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