Saturday, December 16, 2023

व्यंग्य एक शांत अस्त्र के मानिंद हो चला है
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व्यंग्य लिखना  खतरा हुआ करता था लेकिन अब जोखिम कोई उठाता नहीं..
व्यंग्य की धार के सामने कोई आना नहीं चाहता।
वह मनोविनोद और समय गुजारने के लिए /छपने जैसी किसी सक्रियता के लिये मोबाइल, टीवी इंटरनेट आदि सुविधाजनक साधन साधन की तरह इस्तेमाल हो रहा है..इससे अधिक नहीं..
इन दिनों व्यंग्यकारों के पास व्यंग्य लेखन के ज्वलंत मुद्दे नहीं पहुंच रहें
(शायद समय का ट्रैफ़िक जाम हैं )
इसलिए उनके 'ज्यादातर विषय'
फेसबुक की रीच, लाइक कमेंट्स पर केंद्रित होते हैं या फिर साहित्यिक संस्थाओं /किताबों के लोकार्पण में चल रहें घाल मेल पर
मुद्दे ये भी व्यंग्य का विषय ही हैं लेकिन
बहुत ज्यादा इन विषयों की पुनरावृत्ति दिखाई दे रही.. पढ़ने से पहले विषयवस्तु अपना अर्थ समझा जाए तो नीरसता बाधित कर रही है ऐसा समझना चाहिए...
केवल मित्रों के कमेंट्स में धारदार शब्द महसूस होता है लेकिन व्यंग्य में धार कहीं चुभती नहीं...
कटाक्ष में जिज्ञासा का आकर्षण नजर नहीं आ रहा.. (मसलन :व्यंग्यकार ने किस मुद्दे को कौन से नयेपन के साथ रखा जिसमें गहरा कटाक्ष था )
विषयों की पुनरावृत्ति से बचना होगा...व्यंग्य एक शांत अस्त्र के मानिंद हो चला है...आक्रोश और विरोध कुछ सहमे हुए हैं।
--डॉ शोभा जैन



 

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