Saturday, January 22, 2022

'समकाल के नेपथ्य में' विगत सप्ताह की दो महत्वपूर्ण टिप्पणियां ----




 

अमेजन पर किताब का लिंक अपडेट होते ही पहली प्रति आर्डर की फेसबुक मित्र प्रो. अमिता मिश्र जी ने | अमिता मिश्र जी नई दिल्ली में हिंदी की प्राध्यापक हैं और अपने एक काव्य संग्रह के प्रकाशन के साथ प्रतिष्ठित पत्र –पत्रिकाओं में निरंतर  लिखती रहीं हैं फिलहाल प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहीं है | हाल ही में उनका काव्यसंग्रह (कभी –कभी कुछ नहीं मिलता )प्रकाशित हुआ है  |

दूसरी टिप्पणी ----

डाक टिकटों का संग्रह ही नहीं  बल्कि डाक टिकटों का वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले आदरणीय श्री 'फिलेटेली' रविंद्र नारायण पहलवान जी ने ‘समकाल के नेपथ्य में’ कृति के  पन्ने पलटने पर अपनी फेसबुक वाल पर किताब के कुछ शीर्षकों और उसमें संदर्भित टिप्पणी (आदरणीय श्री राकेश शर्मा जी -- संपादक वीणा )को रेखांकित किया है | शेष पूर्ण अध्ययन उपरांत (विशेष ---डाक टिकट संग्राहक श्री रवीन्द्र पहलवान जी के संग्रह में एक लाख से ज्यादा डाक टिकट हैं। इन डाक टिकटों में इंदौर की होलकर रियासत का जारी किया पहला डाक टिकट भी है जो स॑न् 1886 में जारी किया गया था।)
दोनों शब्दशः -------

प्रो. अमिता मिश्र नई दिल्ली-----------------

इंदौर से निकलने वाले पत्र 'साप्ताहिक अग्निधर्मा' की संरक्षक,सहयोगी डॉ. शोभा जैन की पुस्तक "समकाल के नेपथ्य में" (निबंध संग्रह) प्राप्त हुई। शोभा जैन जी लगातार अपने कॉलम और लेखन में उन विषयों को चुनती रही हैं जो दबे ,पिछड़े समाज का सच बयां करते हैं । वे संवेदनशील और साहसी दोनों हैं ऐसा मैं मानती हूं ।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में लिखे गए उनके यह लेख हमारी कई तरह की सामाजिक विसंगतियों की कहानी बयां करते हैं लेखन जब सच्चाई की नब्ज पकड़कर आगे की राह चलता है तो वह अधिक प्रिय हो उठता है। यह पुस्तक कुछ ऐसी ही लगी। फिलहाल पुस्तक पढ़ी जा रही है और इस पर विस्तार से लिखा जाएगा। 
शोभा मैम को बहुत 
बधाई
उनकी इस पहली प्रकाशित पुस्तक पर। वे कह रही थी कि तकनीकी खामियों के चलते उनके कुछ लेख गुम हो गए हैं जो बचा रहा उसे संग्रहीत किया।
एक लेखक की इस खुशी को महसूस किया जा सकता है। वह क्या -क्या गंवा कर इन रास्तों पर चलता है । प्रभा खेतान याद आती हैं जिन्होंने कहीं लिखा था कि सारे शौक मौज से कटकर लिखती रही। 
पुस्तक की भूमिका में लेखन की पीड़ा को बड़ी अच्छी तरह से शब्द दिए गए हैं...!
"सुखिया सब संसार है खावै और सौवे।
दुखिया दास कबीर है जागै और रौवे।।"
कबीर
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'फिलेटेली' श्री रविंद्र नारायण पहलवान जी (इंदौर ) 

क्यों न इंसान को इंसान बनाया जाए!, दर्द की कोई सरहद नहीं होती, हिन्दी साहित्य समाज के हाशिए पर क्यों?, भरतीय संदर्भों का मूल्यांकन, डिजिटल साक्षरता के लिए कितना तैयार है भारत, कैसी धूप कैसी छांव, ओशो की दृष्टि में 'प्रेम' यह कुछ शीर्षक हैं. डॉ. शोभा जैन के निबंध संग्रह 'समकाल के नेपथ्य में. राकेश शर्मा ने लिखा - सत्य के अन्वेषण की तलाश जैसी चिंताएँ.

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